भगवान विष्णु के दशावतार (Dashavatara of Lord Vishnu)






पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्रीहरि विष्णु के कुल 24 अवतार हैं, जिनमें से 10 प्रमुख अवतार माने गए हैं। जो हिन्दू धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के दशावतार के नाम से प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको भगवान विष्णु के दशावतार के बारे में बता रहे हैं। 10 प्रमुख अवतारों में से 9 अवतार वे ले चुके हैं, जबकि 10वां प्रमुख अवतार कलयुग में होना है।

                            
  • मत्स्य (मछली) - (सतयुग अवतार)
भगवान विष्णु का यह अवतार सृष्टि के अंत में हुआ था जब प्रलय काल आने में कुछ वक्त बचा था। सत्यव्रत मनु जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति हुई धर्मात्मा और भगवान विष्णु के भक्त थे। एक दिन जब सत्यव्रत मनु नदी तट पर पूजन और तर्पण कर रहे थे तब उनके कमंडल में नदी की धारा में बहकर एक छोटी सी सुनहरी मछली आ गई।उस छोटी सी मछली को लेकर मनु अपने राजमहल लौट आए। अगले दिन वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे एक बड़े से तालाब में रखना पड़ा। अगले दिन मछली तलाब में भी नहीं समा रही थी तब उसे नदी में डाल दिया गया। उस समय मनु ने मछली से पूछा कि आप असाधारण हैं मछली हैं, आप अपना परिचय दीजिए। भगवान विष्णु मछली से प्रकट हुए और बताया कि आज से 7 दिन बाद प्रलय आने वाला है सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने यह अवतार लिया है। आप एक बड़ी सी नाव बना लीजिए और उसमें सभी प्रकार की औषधि और बीज रख लीजिए ताकि प्रलय के बाद फिर से सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा हो सके। 

                                              
प्रलय आने से पहले भगवान सत्यव्रत के पास आए और उनसे कहा कि आप अपनी नाव को मेरी सूंड में बांध दीजिए। सत्यव्रत परिवार सहित नाव पर सभी प्रकार के बीज और औषधि लेकर सवार हो गए और प्रलयकाल के अंत तक भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के सहारे महासागर में तैरते रहे। मत्स्य अवतार में भगवान ने चारों वेदों को अपने मुंह में दवाए रखा और जब पुनः सृष्टि का निर्माण हुआ तो ब्रह्मा जी को वेद सौंप दिए। इस तरह भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलय काल से लेकर सृष्टि के फिर से निर्माण का काम पूरा किया।

  • कुर्मा (कछुआ) – (सतयुग अवतार)

पुराणों के अनुसार , देवता और असुरो मे युद्ध होता रहता था. सभी देवतागण युद्ध मे, असुरो द्वारा पराजित हो गये और परेशान होकर, भगवान विष्णु जी की शरण मे गये और देवतागण ने, भगवान विष्णु से कहा आपके श्रीकमल चरणों मे हमारा प्रणाम स्वीकार करे. तब भगवान विष्णु ने देवताओ से पूछा, आप सभी देवतागण इतने परेशान क्यों है तब देवताओ ने, उत्तर दिया, हमे असुरो ने युद्ध मे हरा दिया है तो, प्रभु असुरो से जीतने का कोई उपाय बताये. तब भगवान विष्णु बोले, देवगण आप सभी समुद्रतट पर जाकर असुरो से, समझोता कर ले और मंदराचल पर्वत को, मथानी बना कर वासुकी नाग से, रस्सी का काम ले.

तब पर्वतों से जडीबुटीया हटा कर समुद्र मे डाले, और असुरो के साथ समुद्र मंथन कर ले. उसके पश्चात् समुद्र मंथन मे, अमृत उत्पन्न होगा जिसे पीकर, देवता अमृत शक्ति को प्राप्त कर अमर हो जायेंगे जिससे, उसी के साथ सभी देवगण शक्तिशाली हो जायेंगे और उसी शक्ति से, देवगण असुरो को हरा पाएंगे. उसके बाद भगवान विष्णु को प्रणाम कर ,सभी देवताओ ने असुरो के साथ समझोता किया और, समुद्रमंथन की तैयारी मे लग गये.

फिर असुर भगवान विष्णु के पास पहुचे और बोले कि,  मैंने मंदराचल पर्वत को उखाड़ कर समुद्र मे डाल दिया. भगवान विष्णु की आज्ञा से, वासुकी नाग वहा आये, और स्वयं विष्णुजी भी वहा उपस्थित हुए और सभी ने, प्राथना करी कि, हे भगवान! हमे आशीर्वाद दे कि, हम समुद्रमंथन मे सफल हो जाये. समुद्रमंथन मे भगवान विष्णु ने, असुरो को नाग के शीर्ष भाग अर्थात् मुख की और तथा देवताओ को, नाग की अंतिम छोर अर्थात् पूछ की और रखा. मंथन शुरु होने पर आधार ना होने के कारण, मंदराचल पर्वत समुद्र मे डूबने लगा. तब भगवान विष्णु ने सोचा, अब मुझे ही कुछ करना होगा तब भगवान ने, कुर्म रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत के नीचे, घुस कर उसका आधार बने. 




  • वराह – (सतयुग अवतार) 

मत्स्य और कश्यप के बाद तीसरा अवतार है वराह।  इस अवतार के माध्यम से मानव शरीर के साथ परमात्मा का पहला कदम धरती पर पड़ा। मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसानी था। उस समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर कब्जा कर पूरी पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था। हिरण्याक्ष का अर्थ है हिरण्य मतलब स्वर्ण और अक्ष मतलब आंखें। जिसकी आंखें दूसरे के धन पर लगी रहती हों, वो हिरण्याक्ष है। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। 



भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए।

  • नरसिंह  – (सतयुग अवतार)
जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। तप का फल उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने के वरदान के रूप में मिला। वरदान पाकर तो वह मानो अजेय हो गया।  

हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था। देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया।

उधर दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा। प्रहलाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था। वह भगवान का परम भक्त था। वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था।

 

असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया। प्रहलाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- 'मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?' 

 इस पर प्रहलाद ने कहा- 'पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह भाव छोड़ अपने मनको सबके प्रति उदार बनाइए।'

प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा।  उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर अपने प्रिय


  • वामन – (त्रेता युग अवतार )

असुरों के राजा बलि के यज्ञ में भगवान विष्णु वावन स्वरूप में आए और उसे अपने विराट स्वरूप के दर्शन देकर मोक्ष प्रदान किया। उन्होंने कथा प्रसंग को बढ़ाते हुए कहा कि दैत्यराज प्रहलाद के पोत्र बलि ने स्वर्ग में अधिकार कर लिया था। सभी देवता इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा की में स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में जन्म लिया। इधर दैत्यराज बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य और मुनियों के साथ दीर्घकाल तक चलने वाले यज्ञ का आयोजन किया। बलि के इस महायज्ञ में ब्रह्मचारी वामन भी गए। वे अपनी मुस्कान से सब लोगों के मन मोह लेते थे।




शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को पहचान लिया

दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपने तपो बल से वामन के रूप में अवतरित भगवान विष्णु को पहचान लिया। वामन भगवान ने बलि से कहा राजा मुझे दान दीजिए। बलि ने कहा मांग लीजिए। वामन ने कहा मुझे तीन पग धरती चाहिए। पर दैत्य गुरु ने बलि को दान का संकल्प लेने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने कहा गुरुजी यदि ये भगवान हैं तो भी मैं इन्हें खाली हाथ नहीं जाने दे सकता।

बिना अस्त्र शस्त्र के ही जीत दिलवाई : भगवान विष्णु के सभी अवतारों में राक्षसों और देवताओं में युद्ध हुआ और तभी देवताओं को विजय मिली पर भगवान के वामन अवतार में असुर राजा बलि से देवताओं से युद्ध नहीं करना पड़ा और भगवान ने बिना किसी अस्त्र शस्त्र के ही उसको हरा कर पाताल में पहुँचा दिया।

तीन पग में बलि का संपूर्ण

राज पाट छीन लिया

जैसे ही बलि ने दान देने का संकल्प लिया और पूछा ब्राह्मण देवता आपको दान में क्या चाहिए तो वामन ने कहा राजन हमें तो केवल तीन पग जमीन चाहिए। बलि ने कहा नाप लो भगवन तभी भगवान वामन ने अपने विराट स्वरूप का प्रदर्शन किया और एक पग में बलि का राज्य नाप लिया, एक पैर से स्वर्ग का राज नाप लिया। बलि के पास कुछ भी नहीं बचा। तब भगवान ने कहा तीसरा पग कहां रखूं। बलि ने कहा मेरे मस्तक पर रख दीजिए। जैसे ही भगवान ने उसके ऊपर पग धरा राजा बलि पाताल में चले गए। भगवान ने बलि को पाताल का राजा बना दिया।

  • परशुराम – (त्रेता युग अवतार) 

भगवान परशुराम जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। वह भगवान शिव के अनन्य परम भक्त हैं। इन्हें भगवान शिव से ही विशेष परशु प्राप्त हुआ था। जिसके चलते इनका नाम परशुराम हो गया। वैसे इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर के द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ गया था। परशुराम भगवान विष्णु के दस अंशावतार में से छठे अवतार थे, जो वामन अवतार एवं राम के मध्य में आता है।



जब परशुराम का धरती पर जन्म हुआ तब उस समय दुष्ट व राक्षसी प्रवृत्ति के बहुत सारे राजाओं का पृथ्वी पर बोलबाला था। उन्हीं में से एक राजा ने उनके पिता महर्षि जमदग्नि को मार दिया था। इससे परशुराम बहुत कुपित हुए और उन्होंने उस दुष्ट राजा का वध किया। उन्होंने राक्षसी प्रवृत्ति के सभी राजाओं का वध करके पृथ्वीवासियों को भयमुक्त किया था। कुछ कथाओं के आनुसार परशुराम ने पृथ्वी पर क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। उस समय के क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से व पापियों से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए ही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।

  • राम – (त्रेता युग अवतार)

त्रेतायुग में लंका के राजा रावण के वध के लिए भगवान विष्णु अयोध्या में राजा दशरथ के घर राम के रूप में जन्मे थे। सीता हरण के पश्चात लंका के युद्ध में वानर सेना की मदद से राम ने रावण का वध किया। मर्यादित जीवन और आचरण से राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। 



  • कृष्णा – (द्वापरयुग अवतार) 

द्वापरयुग में भगवान विष्णु 16 कलाओं में पूर्ण कृष्ण के रूप में कारागार में जन्मे। माता देवकी और पिता वासुदेव थे। कंस वध, बाल लीलाएं, महाभारत में अर्जुन के सारथी और कुरूक्षेत्र में गीता का उपदेश — यह कृष्ण अवतार की प्रमुख घटनाएं हैं। कृष्ण अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना जाता है।


  • बुद्ध अवतार 

भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है। उन्होंने विश्व में शांति स्थापना के लिए यह अवतार लिया था।

  • कल्कि अवतार 

 हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु कलयुग के अंत में कल्कि अवतार लेंगे और वह 64 कलाओं में निपुण होंगे। वह घोड़े पर सवार होकर पापियों का संहार करेंगे और धर्म की दोबारा स्थापना करेंगे। इसके बाद सतयुग का प्रारंभ होगा।




Instagram 



Comments